तुम्हारी ऊबड़-खाबड़ चट्टानों पर गिर-फिसल कर, लांग-फलांग कर रोज मन के सहारे सबसे ऊँची चट्टान पर सूरज को हाथ हिलाकर अलविदा कहने जाती हूँ | सूरज...
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