​भविष्य को निगलती मानसिक विकृति (बाल यौनशोषण) 

भविष्य को निगलती मानसिक विकृति / सिहरा हुआ कल/ मानसिक विकृति से जनमती पंगु पीढ़ी

एक छोटे से बच्चे के साथ बिताए हुए पल एक मनुष्य के जीवन के बेहतरीन पल होते हैं| बच्चे की गूंजती किलकारियाँ, उसकी पनीली चमकती आँखें, बहुत कुछ बोल देने की चाह में लार से सने गुलाबी नर्म पंखुड़ियों से होंठ, बार-बार खेलते हुए अपने नन्हें-नन्हें हाथों से वो उंगलियाँ पकड़ लेना, कमर के सहारे खुद को उछाल कर खड़े हो जाने की चाह,पैरों की वो लगातार चलती साइकिल और गोद में आने के लिए बढ़े वो छोटे-छोटे हाथ;क्या इससे ज्यादा मनभावन दृश्य कुछ हो सकता है? क्या किसी बच्चे को देख कर किसी के मन में मलिनता या क्रूरता का भाव आ सकता है? यह बिलकुल वैसा ही होता है जैसे किसी कली को खिलने के पहले ही मसल डाला गया हो|

  •  कौन है दोषी?

समाज में बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराधों से साफ़ पता चलता है की आज के मनुष्य में कितनी मानसिक विकृति आ गई है| वह किसी छोटे से बच्चे को भी, बड़ी बेशर्मी से, अपनी घिनौनी हरकतों का शिकार बना लेता है| वैज्ञानिकों की मानें तो ‘बच्चों के प्रति एक युवा या प्रौढ़ का यह यौन आकर्षण एक मानसिक रोग है जिसे ‘पीडोफिलिया’ कहा जाता है’| इसका कारण किसी के साथ बचपन में घटी समान घटना या अत्यधिक कामोत्तेजित होना मना गया है| यही उत्तेजना किसी दुसरे मनुष्य को जीवन भर के लिए एक ऐसा ज़ख्म दे जाती है कि उसका सारा व्यक्तित्व किसी के कुछ पल के मनोरंजन के लिए स्वाहा हो जाता है| 

बालमन अत्यधिक कोमल और स्वच्छ होता है|बालक माटी के उस लोंदे के सामान है जिसको जैसा आकार दो,उसपर जैसी छाप छोड़ो वह आजीवन उस मन पर रह जाती है| जब एक युवा स्त्री अपने साथ हुए कुकर्म का बोझ सारा जीवन ढोती है तो एक छोटे से बालक पर यौनशोषण का क्या असर होता है;इसकी कल्पना मात्र भयावह है|

  • कहाँ सुरक्षित हैं बच्चे? 

यह एक सामान्य मान्यता है की आज के एकल परिवारों में जहाँ माँ-बाप दोनों ही कार्यरत हैं और अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते; उन बच्चों के साथ अक्सर ऐसी घटनाएँ होती हैं|ऐसा बिलकुल भी नहीं है| चाहे परिवार एकल हो या सामूहिक, बच्चा किसी अपने के साथ जाए या बस में,सरकारी विद्यालय में पढ़े या निजी स्कूल में; ऐसे दरिंदे हर जगह हैं – रास्ते पर,स्कूल में,मोहल्ले में,पड़ोस में यहाँ तक कि आपके खुद के घरों में| चाचा,बुआ,मामा,मौसा,घर के बुज़ुर्ग यहाँ तक की अपने ही माँ-बाप के कुकर्मों के किस्से आपको अन्दर तक देहला देते हैं| क्या आपका बच्चा कहीं सुरक्षित नहीं है? कैसे सुनिश्चित किया जाए अपने छोटे से बच्चे की सुरक्षा?

  • बाल सुरक्षा क्या केवल माँ-बाप की ज़िम्मेदारी है? 

बच्चा केवल माँ बाप की ही नहीं उन विद्यालयों की भी ज़िम्मेदारी है जहाँ वह अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण साल गुजारता है|माँ बाप उसे बड़े विश्वास से उन विद्या-मंदिरों में छोड़ आते हैं| अभिभावक और विद्यालयों को इस दिशा में मिल कर काम करना चाहिए| बच्चों को गुड-टच और बैड-टच का अंतर बताना बहुत ही ज़रूरी है| प्रायः बालक ऐसी स्थिति में सख़ते में आ जाता है| मन में आ रही आत्म-ग्लानी और डांटे जाने के डर से बच्चा अपने साथ हो रहे शोषण को किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पता और अन्दर ही अन्दर घुलता चला जाता है| उसके भीतर का स्वाभिमान और आत्मविश्वास धीरे-धीरे दम तोड़ने लगता है जिसका सीधा प्रभाव उसकी पढ़ाई और सामजिक व्यवहार पर पड़ता है| इसलिए ज़रूरी है कि यौन शोषण की इस चर्चा को इतना सहज और स्वाभाविक बना दिया जाए कि बच्चा खुल कर अपने बड़ों से इस विषय में बात कर सके और ऐसी परिस्थिति आने पर डँटकर विरोध कर सके|

  •  कड़े कदम:

विद्यालयों में इस विषय पर पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए जिसे पढ़ाना हर शिक्षक को आवश्यक हो| विद्यालयों और संविधान में बाल यौन शोषण के खिलाफ सख्त़ कानून बनाये जाएँ कि कोई भी इंसान ऐसा काम करने से पहले हज़ार बार सोचे| विद्यालयों में एक ‘बाल यौन सुरक्षा समिति’ का गठन हो जो समय-समय पर अभिभावकों को आश्वस्त करने के साथ-साथ विद्यालय में चल रही गतिविधियों पर निगरानी रखे| बस में एक महिला कंडक्टर को विशेष निगरानी के लिए नियुक्त किया जाए|

बच्चे हमारे आने वाले भविष्य के दर्पण हैं| इनके मन पर लगा एक भी दाग आने वाले कल को मैला कर सकता है| बच्चों के खिलाफ हो रहे अपराधों की रोकथाम इसलिए भी ज़रूरी है ताकि एक और मनोरुग्ण पीढ़ी आने वाली कई पीढ़ियों का भविष्य न खराब कर दे|