पहले ऐसे ही विचारी होंगी संभावनाएँ निहारे होंगे नभों के शून्य आँखें सिकोड़कर झांकी होंगी अनंत गहराइयाँ अंदर और बाहर बार-बार भटक कर खोजी होंगी दिशाएँ...
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अर्धविराम के आगे
उस अर्धविराम के पास बैठा मेरा जीवन, व्याकुल सा, कभी मेरा चहरा, कभी कलम की नोक तकता है मैं, न जाने कब से, उसे, एक सोच...
Continue reading...रंगों की भी है दुनिया
सुफ़ैद और सियाह में रंगीं ये गोल दुनिया साँकलों से जकड़ी बक्से सी बन्द दुनिया क्यों नहीं बगावत ये रंग छेड़ देते? दम घोटती रही थी...
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