​भारत भर की नवरात्रि के 4 विशिष्ट रंग

Courtesy: Siddharth Dev

आश्विन प्रतिपदा से शुरू होने वाला दुर्गोत्सव भारत भर में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है| माँ अम्बे अपने भव्य स्वरूपों में नौ दिनों तक अपने दोनों पुत्रों (कार्तिकेय एवं गणेश), माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती और अपनी दो सखियों – जया-विजया के साथ धरती पर उपस्थित रहती हैं| माता के इस आगमन को देश भर के प्रान्तों में विविध रूपों में मनाया जाता है|

  • केरल का ‘विद्यारम्भ’: 

केरल में नवरात्री के आखरी तीन दिनों का खासा महत्व है| इन तीन दिनों को केरल के लोग माँ सरस्वती की अराधना में समर्पित करते हैं| दुर्गा अष्टमी की शाम को ऐच्छिक विद्या प्राप्ति के सभी साधानों का संचयन किया जाता है, जिसे ‘पूजावय्यप्पू’ कहते हैं| महानवमी के दिन केरल वासी माँ सरस्वती की पूजा करते हैं|बच्चे से पहला अक्षर गेंहू या चावल पर लिखवाया जाता है|अगले ही दिन अर्थात विजयादशमी को उसे शिक्षा प्राप्ति के लिए घर से बाहर भेजा जाता है| केरल में यह पर्व कुछ नया सीखने के लिए सर्वोच्च माना जाता है|

  •  तमिलनाडु की त्रिदेवी उपासना:

तमिलनाडु में शुरुवात के तीन दिन माँ दुर्गा, बीच के तीन दिन माँ लक्ष्मी और बचे तीन दिनों में माँ सरस्वती की पूजा होती है| घर-घर माँ दुर्गा की प्रतिमाएँ बैठाई जाती हैं| मंदिरों और राजदरबारों में संगीत एवं नृत्य सभाओं का आयोजन होता है जिसमें ‘पुलिकली’(शेर नृत्य) तथा ‘कई सीलाम्बू अट्टम’ जैसी नृत्य कलाओं का प्रदर्शन होता है|

  • बंगाल में ‘पूजो’ की धूम: 

Courtesy: Siddharth Dev

बंगाली हिन्दुओं के लिए ‘नवरात्रि’ साल का सबसे बड़ा त्यौहार होता है| यह पर्व  आत्मिक,वैचारिक एवं शारीरिक शुद्धता का प्रतीक है जिसकी तैयारी दुर्गा पूजा के कई माहीनों पूर्व ही शुरू हो जाती है| यह त्यौहार सबसे पहले 1757 में रोबर्ट क्लाइव की प्लासी विजय पर मनाया गया था| बंगाल में नवरात्रि के अंतिम छः दिनों का ज्यादा महत्व होता है| माँ दुर्गा की प्रतिमा के निर्माण के लिए,पूजा की ईच्छा रखने वाले को मिट्टी का एक भाग वैश्या के घर से लाना होता है|मान्यता के अनुसार माँ दुर्गा महिषासुर के संघार के लिए पृथ्वी लोक पर अवतरित हुई थीं| उसने माँ दुर्गा की अस्मिता पर प्रहार किया था जिससे क्रुद्ध हो माता ने बड़ी क्रूरता के साथ उस पापी का विनाश किया| बंगाल की दुर्गा पूजा ‘शक्ति’ के हर स्वरुप को पूजती है| इसके पश्च्यात प्रतिमा विसर्जन शिव और पार्वती के पुनर्मिलन को दर्शाता है|

  • गुजरात का रास:

माना जाता है की अग्नि देव के दिए गए वरदान के फल स्वरुप, महिषासुर नामक राक्षस को किसी देव द्वारा मारा जाना संभव नहीं था| उसके उपद्रव से विचलित,समस्त देवगण महादेव के पास पहुँचे| महादेव ने अपनी अर्धांगिनी माँ पार्वती को महिषासुर के संघार का जिम्मा सौंपा| दुर्गा के रूप में माता ने नौ दिनों और नौ रातों तक उससे युद्ध किया और विजयादशमी को उसका वध किया| गुजरात की संस्कृति सौराष्ट्र एवं कच्छ की गोप संस्कृति से प्रेरित है जहाँ हर ख़ुशी का स्वागत गरबा व डांडिया रास से किया जाता है| रास में लीन जन समुदाय माँ दुर्गा की सांकेतिक प्रतिमा के इर्द-गिर्द गोलाकार में नृत्य करते हैं| तमिलनाडु की तरह शुरुवाती तीन दिनों में तन, मन और जीवन की शुद्धि प्रदान करने वाली माँ दुर्गा की, अगले तीन दिनों में धन एवं समृद्धि दात्री, माँ लक्ष्मी की और अंतिम तीन दिनों में बुद्धि और कला की देवी सरस्स्वती की आराधना होती है| त्यौहार का समूचा केंद्र बिंदु सौराष्ट्र स्थित तीन शक्ति पीठों पर होता है – पावागढ़,अम्बाजी तथा बहुचाराजी| 

Courtesy: Sanjeev Nath