
कैसे सुना पाऊँगी कि यहाँ सुबह कैसी होती है?
कैसे बता पाऊँगी कि हर महीने ये पहाड़ रंग कैसे बदलते हैं, कि पतझड़ यहाँ बसंत बीत जाने के बाद आता है? पता नहीं कैसे सगौन के सूखे, मुंडे पेड़ों पर रातों-रात छोटे-छोटे हरे-हरे पत्ते आ जाते हैं? हर रोज़ ठीक साढ़े आठ-नौ बजे के करीब एक लकड़बग्घा मेरे घर के सामने से गुज़रता है|जंगली जानवरों के लिए बने तालाब की मेड़ उतर कर हर गदबेर एक भालू जंगल वॉर हेडक्वार्टर्स वाली पहाड़ी की तरफ़ जाता है| पहाड़ों पर जगह-जगह सेमल के पेड़ों पर सफ़ेद फूलों जैसे रूई के गुच्छे लगे हैं जिसमें से कुछ हवा में तितर-बितर होकर नीचे मैदान पर लोटते नज़र आते हैं| छत पर खेलने वाले बच्चों ने बेकार पड़ी प्लाई और धूप में गली चटाई को जोड़ कर एक झोपड़ी बनाई है|बंदरों के झुंड इन्सानी बस्तियों में आम और कोमल-कोमल पत्ते खाने आते हैं, उनमें भी पहले छोटे बच्चों वाली माँयें फिर थोड़े टीन एज टाइप के बंदर फिर बाकी बड़े बंदर खाते हैं, बंदरों का मुखिया जो सबसे बड़ा दिखता भी है, सबसे ऊँचे पेड़ पर बैठ कर निगरानी रखता है, मौसम खराब होने पर या किसी जंगली जानवर को देख कर एक बहुत डरावनी सी हूक-हूक की आवाज़ निकालता है और सारे बंदर दौड़-दौड़ कर पेड़ों, छज्जों वगैरह पे चढ़ जाते हैं, जब तक बारिश होती है सारे बंदर पतले-पतले छज्जों के नीचे घुस-घुस कर बैठे रहते हैं|कई बार मैंने बंदरों को पहाड़ की ऊँची खड़ी चट्टानों पर चढ़ कर पहाड़ पार करते देखा है| कई लोगों का कहना है कि यहाँ तेंदुआ भी आता है पर मैंने आज तक नहीं देखा, एक दिन गायों का झुंड मुँह सुखाए-पूँछ उठाए पहाड़ की ओर से दौड़ता आ रहा था, बाजू वालों के पेड़ पर जो आम लगा है वो बिलकुल आम के शेप का है, जैसा बचपन में बनाते थे, मैंने पहली बार देखा, रिज़र्व्ड फ़ॉरेस्ट की ऐसे तो कोई बाऊन्ड्री तो नहीं है पर सिमेंट के सफेद पुते भिटकें है, कैसे यहाँ के स्थानीय आदिवासी एक स्पेशल टेकनीक से पेड़ काटते हैं ताकि ज़्यादा आवाज़ ना हो, रेगुलर इंटरवल्स पर एक बार में एक खट की आवाज़, गजब का पेशेंस है, भाई! महुए की खुशबू, बसंत में लाल हरे रंग का पहाड़, शाम का सिलउट्टे सा इफ्फेक्ट, रात के इतने सारे तारे, कभी-कभी मिल्की-वे भी, रात को छत पर ईयर फ़ोन्स पर गाने, किनारे पैर लटका कर बैठना, ठंडी हवा, दूर किसी पहाड़ी पर लगी आग, आज भी सूरज उगने से पहले कुत्ते के साथ जंगल की ओर तगाड़ी-टंगिया लेकर जाते आदिवासी पति–पत्नी और शाम को सूरज ढल जाने के बाद उसी तरह वापस आते हैं, सब छोड़ कर पॉलिथिन खाती गाय को देखकर हवा से ज़ोर-जो़र हिलते-टकराते-ताली बजाते पत्ते, बहुत कुछ है! एक साल में हर दिन कुछ अनोखा दिखा| आज कल जंगल से आवाज़ आती है
जब सागौन के पेड़ों के सारे पत्ते झड़ जाते हैं तो अनगिनत जंगली झिंगुर गला फाड़ कर चिल्ला रहे होते हैं चौबीस घंटे|
ये वाले झिंगुर नॉर्मल झिंगुर से बड़े होते हैं
लकड़ी के छोटे टुकड़े की तरह दिखते हैं| बहुत भद्दी और तेज आवाज़ होती है इनकी|
एक आदमी है| जो पेपर बेचता है, लोगों के छोटे-मोटे काम करता है| उसकी एक आँख पर सफ़ेद जाला है, शायद वो काना है|मज़ेदार बात ये है कि पंचायत सभा हो या शहर में भंडारा, वो पूरे ग्रामीण क्षेत्र में घूम-घूम कर चिल्ला-चिल्ला कर अनाउन्स कर आता है|
“सुनो, सुनो, सुनो, आज हनुमान जयंती के अवसर पर शहर में फलाँ मंदिर में भंडारा है…. ”
बाजू के घर वालों ने बकरियाँ पाल रखी हैं| अब तो दो बकरे और दो बकरियाँ हो गई हैं| बकरियाँ तो चुप रहती हैं पर जब पहला बकरा आया तो वो सुबह-शाम-रात चिल्लाता रहता था|मेरे रूम की खिड़की के नीचे बाँधा जाता था| पहले दिन लगा मानो कोई जंगली जानवर किसी निरीह जानवर का शिकार कर रहा है| तीन-चार दिनों तक ये सोचा कि ईद करीब है, हलाल होने आया है| ईद बीती तो उसे और मुझे, दोनों को ये यकीन हो गया कि ये अब लंबा टिकेगा| वो शांत हो गया और मैं निश्चिंत|
बादलों की बात नहीं बताऊँगी वो देखे बिना महसूस नहीं होंगे| अब तो आओगे ना यहाँ?
पी. एस: हिन्दी में इंगलिश लिखने का मज़ा ही कुछ और है!
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Bahut hi khoobsurat likha h aapne…💜💜💜
Dhanyawad ❤
Exquisite Di
Thank you, Salil