विद्या कसम!

लिखने को कुछ है तो नहीं पर लेखक बनने की इच्छा है तो लिखते रहना चाहिए, यही अपेक्षित भी है मुझसे और ज़रूरी भी| क्या करें यह भी सही है की ‘करत-करत अभ्यास जड़-मति होत सुजान’| सुजान हो या ना हो अभ्यास बना रहेगा कलम पकड़ने का, लिखने का, शब्दों का ताना-बाना बुनने का और बस लिखते रहने का|
लेखक की लेखन क्षमता इससे ही पता चल पाती है की वह लिखते वक़्त सोचने को कितना रुकता है| क्या कहीं म्म्म-अSSS के चक्कर में घंटों में चाँद लइनों का रन रेट तो नहीं? लेखन तभी सफल है जब कलम की रफ़्तार के साथ शब्दों और विचारों का फ़्लो कायम रहे| वैसे हम कौन होते हैं लेखक को कामयाब या नाकामयाब कहने वाले| तुम 10 मिनट में लिखो या 10 घंटों में हमें क्या मतलब| बस कंटेंट अच्छा होना चाहिए|
विषय जितना जटिल होता है समय उतना ही कम लगता है और आसान से आसान विषय पर लिखने में हालत खराब हो जाती है| प्रायः काम्प्लेक्स कंटेंट का रॉ मटेरियल या उससे जुड़ी जानकारी जितनी मिल जाए आदमी उतना लिख देता है| पर जिस विषय के बारे में पूरा ब्रह्माण्ड पड़ा हो उसमें से ‘क्या लिखना है?’ कैसे चुना जाए?

लिखना तो कला है| कब, कहाँ, कैसे, किसको मोटिवेशन मिल जाए, खुदा जाने| कला इंसान को चुनती है| इतना कुछ है लिखने को तो लेखक आदमी को विषयों की क्या कमी? अब देखिये मैंने केवल लेखन पर ही इतना कुछ लिख डाला| क्या करें कलम हाथ में आती नहीं की बस चल पड़ती है| लेखक के लिए यही तो एक काम है जो मक्खन सरीखा है| ऐसे में कलम हाथ आये तो सोचियेगा मत| इस लेखक समुदाय की कसम, लिखियेगा ज़रूर| विद्या कसम!